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#एकअमिटयाद चलते चलते तुम मुझे पूछ रहे थे अनेक अन


#एकअमिटयाद 
चलते चलते तुम मुझे पूछ रहे थे
अनेक अनकही बातें
मन में जीवित हो रहा था
परित्यक्त मंदिर का वैराग्य..
चल चंचल हो रहे थे
स्थाणु नर,नारी, नर्तकी,हाथी, घोड़ा..
अचानक तुम बदल चुके थे
बर्षण मुखर आकाश जैसा
तुम्हारे वो आंखों को देखकर
शायद नदी भी खिसक गई होगी
दो फर्लंग पीछे..
इस बार तुमने पूछा था- सच में क्या तुम मुझे भूल पाओगे?
पर तुम जहां भी रहो प्रीतिलग्ना!
पत्थर के ऊपर देखता हूं कोई कलाकृति
आज भी याद आता है वो उत्तर..
पुरुष तो पत्थर जैसा!
और उसके आंखों में दिखते हैं
अमिट याद की शिलालेख!!

©Sandhya
  #Reindeer