चलो...आओ फिर से बच्चे बनते है !! डेढ़ आँखे बन्द किये मैं सो गया हूं कहकर मन ही मन माँ को उलझाते है आओ..फिर से ताई की चुनड़ी खिंचते है बाल बनाती दादी की चोटी खींचते है कभी कंघी तो कभी तेल का डब्बा छुपाकर दीदी को घर ही घर मे घुमाते है चलो....आओ फिर से बच्चे बनते है !! ओह...बारिश आ गई अरे...रुक भी गई दीदी देखो ये जमी तो पूरी भीग गई दीदी... आओ न् भीगी जमी पर दो मंजिला घर बनाते है छत पर चढ़कर सुहाने मौसम का आनंद उठाते है पंछियों संग हम भी अपने पर जमाते है पतंग की डोर से लटक कर खुले गगन में उड़ते है आओ न्.... परू आओ, मनु..दीदी..भैया तुम भी आओ ताऊ के घर के आगे कंसे खेलते है चलो...आओ न फिर से बच्चे बनते है !! आज तो दीदी की बुक छुपा देते है बिजली चली गई...ये मोमबत्ती भी बुझा देते है अंधेरा है..पड़ोसी का एंटीना घुमा देते है अरे उसकी चॉकलेट गिर गई...पाँव नीचे दबा देते है चलो...आओ न् हम फिर से बच्चे बनते है ! होली है..चलो उस पर गोबर फेंक देते है दिवाली है..उस पर पटाखा फेंक देते है वो होली का रंग,दिवाली का शोर सावण में छत पर पंख खोलता मोर पापा से डर, मम्मी पर चलता वो हमारा जोर ढूंढ रहा हूं मेरा बचपन जमाने मे है किस ओर खिलौना चाहिये था...नही दिया गुस्सा हूं..चलो आज खाना नही खाते है आज तो चलो चाचा के घर ही सो जाते है अरे मम्मी...मम्मी छत से देख रही है नही...देखने दे उसे, नही देखना मुझे आज तो बेरुख हो जाते है !! चलो आओ..हम फिर से बच्चे बन जाते है !!