एक तरफ़ा इश्क़-ए-सफ़र आँसा कहाँ होता? कोई बेख़बर है सोता , कहीं कोई रातभर रोता। मिलता नहीं हर किसी को मनचाहा दिलबर यहाँ, फूल खिलते कहीं, तो कहीं हिस्से में काँटा होता। इक़रार-ए-मुहब्बत यहाँ फक़त आयने से है होती, दिल देतें हैं जिसे उससे दिल का मिलन नहीं होता? बेक़रारी होती पर, हिस्सेदारी की यहाँ बात न होती, एक उसके ही हक़ की ये दिल दुआ हर दिन पढ़ता। हक़ीक़त से दूर,हर नज़ारें में उससे मुलाक़ात होती, बेहद ख़ास है ये इश्क़ के ये इश्क़ आम नहीं होता। ज़ोर ज़बरदस्ती की चाहत इसकी मंज़िल नहीं होती, भुला अपना ग़म ये उसकी ख़ुशी में मुस्कुरा लेता। ♥️ Challenge-757 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।