यूं वेदनाएं तो प्रवाहित ना होंगी इक दूजे में ना मिटेगा सम विषम का गणित पर संभवतः सृजित हो एक विश्वास सम विषम प्रकृति में बंटा समाज बंट गया और भी जब स्त्री पुरुष की विभिन्नताओं को भी बाँट दिया गया विष और अमृत में... नहीं समझ पाते पुरुष कभी भी बंद कमरे में दीवारें खुरचती स्त्रियों को