उसूलों में बंधी थी यूँ जिन्दगी, खामखां जरूरतें ख्वाहिश से बढ़कर रही! सोचा उम्र छोटी, कहीं सोच छोटी न समझों, हम नादान है बहुत मगर हमारी मेहनत का न छीनों! कुसूर नहीं उस तकदीर लिखने वाले का, जब तोहफे में खुद ही खुबसूरत हंसी मांगी थी! क्यों तराशते गए वो हीरा, जब नसीब में वो पत्थर ही लिखा था॥ ©Mamta Thakur give a little but give a good. #achieve