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मै भी कमा सकता हूँ, दौलत ज़माने भर की, मग़र फ़िक्र

मै भी कमा सकता हूँ, दौलत ज़माने भर की, 
 मग़र फ़िक्र है,तो बुज़ुर्गो के उठे हुये सर की, 
 ग़र कोई मुझे नाकारा समझे,तो समझता रहे, 
 मेरे फितरत में नही है,चलाना दुकां ज़हर की, 
 पिता मुझे कहते थे,अब मै बेटे से कहता हूँ, 
 जल्दी घर आना,ख़राब है आबो हवा शहर की, 
 बहुत तपिश है,इन कंक्रीट के शहरी मकानों में, 
 बात ही कुछ और थी,गाँव के खपरैल घर की, 
 वक़्त बहुत कम है,कमा लो नेकी ख़ुदा के वास्ते, 
 म्याद तय है बन्दे,यंहा हर किसी की उमर की, 
 दिमाग से लिखता नही,”मन” लिखता है दिल से, 
 उन्हें कमी दिखती है,मेरी ग़ज़लो में बहर की, 
Jp arya”
मै भी कमा सकता हूँ, दौलत ज़माने भर की, 
 मग़र फ़िक्र है,तो बुज़ुर्गो के उठे हुये सर की, 
 ग़र कोई मुझे नाकारा समझे,तो समझता रहे, 
 मेरे फितरत में नही है,चलाना दुकां ज़हर की, 
 पिता मुझे कहते थे,अब मै बेटे से कहता हूँ, 
 जल्दी घर आना,ख़राब है आबो हवा शहर की, 
 बहुत तपिश है,इन कंक्रीट के शहरी मकानों में, 
 बात ही कुछ और थी,गाँव के खपरैल घर की, 
 वक़्त बहुत कम है,कमा लो नेकी ख़ुदा के वास्ते, 
 म्याद तय है बन्दे,यंहा हर किसी की उमर की, 
 दिमाग से लिखता नही,”मन” लिखता है दिल से, 
 उन्हें कमी दिखती है,मेरी ग़ज़लो में बहर की, 
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