शीर्षक: छला नहीं
लेखक: प्रभाकर प्रजापति
मैं सींच रहा बरसों से जिसको, वृक्ष अभी तक फला नहीं...
मैं छला गया हूँ उससे जिसको, कभी भी मैंने छला नहीं!!
1) फूलों की चाहत में मैंने, कांटो को दामन बना लिया,
उम्मीदों की बौछारों से, पतझड़ को सावन बना दिया l #Shayari#Prabhakar_Prajapati