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देर रात तलक जागता हूँ, नज़्म की सोहबत में। सुबह कवि

देर रात तलक जागता हूँ, नज़्म की सोहबत में।
सुबह कविता कुछ उखड़ी उखड़ी सी रहती है।
देर रात तलक जागता हूँ, नज़्म की सोहबत में।
सुबह कविता कुछ उखड़ी उखड़ी सी रहती है।