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हटा दो क्रोध को मन से ठसन की क्या जरूरत है। सतोगुण

हटा दो क्रोध को मन से ठसन की क्या जरूरत है।
सतोगुण से भरे घर में भजन की क्या जरूरत है।

अगर हर आदमी के बस में हों सब इंद्रियां उसकी,
तो' उसका तेज काफी है हवन की क्या जरूरत है।

पहनकर योग का बाना बजाते ढोंग की घंटी,
अधर्मी चाटुकारों से मिलन की क्या जरूरत है।

उलझकर जाति धर्मों में हुए खुद के विरोधी हम,
वृथा ही द्वेष लपटों में जलन की क्या जरूरत है।

उलिचकर आंख का पानी  चले हो सींचने खर को,
"करन" सावन के' पेड़ों को पवन की क्या जरूरत है।
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रचनाकार-
करन सिंह परिहार
ग्राम-पोस्ट - पिण्डारन
जिला - बांदा (उत्तर प्रदेश)

©करन सिंह परिहार
  #क्या जरूरत है