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मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं | द

मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं |
दिलो में है अरमान यही, कुछ कर जाएं... कुछ कर जाएं |
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे..। 
तुम मुझको कब तक रोकोगे...
- Motivational poem by 
Amitabh Bachchan मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं | 
दिलो में है अरमान यही, कुछ कर जाएं... कुछ कर जाएं | सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे..।
 तुम मुझको कब तक रोकोगे..। 
में उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है.. में उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है.. बंजर माटी में पलकर मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ... मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ | 
शीशे से कब तक तोड़ोगे... मिटने वाला नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ... इस जग में जितने जुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है.. तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है.. मैं सागर से भी गहरा हूँ .. मैं सागर से भी गहरा हूँ .. तुम कितने कंकड़ फेंकोगे, चुन-चुन कर आगे बढूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ... जुक जुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शोख नहीं ... जुक जुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शोख नहीं , अपने ही हाथों रचा स्वय तुमसे मिटने का खौफ नहीं , तुम हालातो की मुट्ठी में जब जब भी मुझको झोकोंगे.. तब तपकर सोना बनुंगा में, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ...
मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं |
दिलो में है अरमान यही, कुछ कर जाएं... कुछ कर जाएं |
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे..। 
तुम मुझको कब तक रोकोगे...
- Motivational poem by 
Amitabh Bachchan मुट्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं | 
दिलो में है अरमान यही, कुछ कर जाएं... कुछ कर जाएं | सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। 
सूरज-सा तेज़ नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे। अपनी हद रौशन करने से, तुम मुझको कब तक रोकोगे..।
 तुम मुझको कब तक रोकोगे..। 
में उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है.. में उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है.. बंजर माटी में पलकर मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ... मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ | 
शीशे से कब तक तोड़ोगे... मिटने वाला नाम नहीं, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ... इस जग में जितने जुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है.. तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है.. मैं सागर से भी गहरा हूँ .. मैं सागर से भी गहरा हूँ .. तुम कितने कंकड़ फेंकोगे, चुन-चुन कर आगे बढूंगा मैं, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ... जुक जुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शोख नहीं ... जुक जुककर सीधा खड़ा हुआ, अब फिर झुकने का शोख नहीं , अपने ही हाथों रचा स्वय तुमसे मिटने का खौफ नहीं , तुम हालातो की मुट्ठी में जब जब भी मुझको झोकोंगे.. तब तपकर सोना बनुंगा में, तुम मुझको कब तक रोकोगे ... तुम मुझको कब तक रोकोगे ...