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फिर एक मोती टूट गया, फिर एक साथ छूट गया। फिर से ख

फिर एक मोती टूट गया,
फिर एक साथ छूट गया।

फिर से खो दिया है कुछ मैने,
गुजर गई एक सदी बस पल मे,
रह गया हो कुछ अधुरापन जैसे।

उस कमरे की चौकी पर, 
मिट्टी की वो चिलम, अब सूनी होगी।
नही गूंजेगी उस कमरे मे अब,
वो रामायण की चौपाईयाँ, वो गीता के अध्याय।

अब चाय के लिए वो आवाज,
फिर सुनाई नही देगी।
ग्वार के भाव पर चर्चा,
अब फिर नही होगी।

घर लौटने पर नही होगी,
वो गर्वित और स्वाभिमानी नजरें।
धोती कुर्ता पहने वो अखंड व्यक्तित्व,
नही होगा पहले जैसा कुछ भी।

सरों पर साये की तरह था जो वृक्ष,
आज बह चला वो वक्त की धार मे।
फिर एक मोती टूट गया,
फिर एक साथ छूट गया।
                 दादाजी ❤
फिर एक मोती टूट गया,
फिर एक साथ छूट गया।

फिर से खो दिया है कुछ मैने,
गुजर गई एक सदी बस पल मे,
रह गया हो कुछ अधुरापन जैसे।

उस कमरे की चौकी पर, 
मिट्टी की वो चिलम, अब सूनी होगी।
नही गूंजेगी उस कमरे मे अब,
वो रामायण की चौपाईयाँ, वो गीता के अध्याय।

अब चाय के लिए वो आवाज,
फिर सुनाई नही देगी।
ग्वार के भाव पर चर्चा,
अब फिर नही होगी।

घर लौटने पर नही होगी,
वो गर्वित और स्वाभिमानी नजरें।
धोती कुर्ता पहने वो अखंड व्यक्तित्व,
नही होगा पहले जैसा कुछ भी।

सरों पर साये की तरह था जो वृक्ष,
आज बह चला वो वक्त की धार मे।
फिर एक मोती टूट गया,
फिर एक साथ छूट गया।
                 दादाजी ❤