कभी हाले दिल तुमसे कहना था दुस्तर कभी जानेमन तुमको फुरसत नहीं थी अंधेरी थी गालियां उजाले कफस में यों सूरज की किसको ज़रूरत नहीं थी कभी तुम सही थे कभी हम सही थे समझने की थोड़ी कवायद रही थी थी मजबूरियां दोनों जानिब मुसलसल जीने की इतनी यही रियायत रही थी समय की ये गाड़ी चली जा रही थी वीरान महफ़िल की शिरकत रही थी इन आंखों देहरी का दिया जलता बुझता हवा बेहरम सी बही जा रही थी तूफ़ान दिल में रहा था मचलता तमन्ना की कश्ती गश खा रही थी कोई एक वजह तो हो जाने मुनव्वर चांद! रात जिसके सहारे चली जा रही थी किसी पल तो ठहरो किसी शाम आओ तन्हा प्याली! चाय कब से अकेले ही पी जा रही थी #toyou #yqlove #yqlife #yqvoid #yqvacanteyes #yqyouandme #yqanybody