संभलते...संभलते....कुछ टूट गया फिर से
के सपने फिर संजोए ही थे
के उम्मीद का दामन छूट गया फिर से
और ये ज़ख्म भर जाएंगे अब कोई ऐसी उम्मीद ना है
जिन गुल्लकों में हमने छुपाए रखीं थीं खुशियां..वो खुशियों वाला गुल्लक फूट गया फिर से
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