कितनी अजीब बात है ?
मैं चाँद को रोज देखता हूँ,
देखता हूँ सूरज को रोज ढलते हुए,
ये तारे रोज ही तो चमकते हैं ।
पर नही देख पाता रोज जिसे वो हो तुम।
तुम्हें न देख पाना कोई गम सा तो नही है,
पर तुम्हें देखना किसी जन्नत से कम भी नही ।
तुम्हें देखना ऐसा है जैसे तपती गर्मी में पहली बारिश का होना या फिर किसी परिंदे का पहली दफा उड़ पाना या किसी बच्चे का घुटनों के बल चलने की पहली कोशिश जैसा या किसी कवि की पहली कविता जैसा ।