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हृदय जब भटका तो वह एक शख्स पर अटका जैसे बरसों से थ

हृदय जब भटका
तो वह एक शख्स पर अटका
जैसे बरसों से था वह इसके लिए भटका
खुद को तो निकलती
लेकिन कैसे  
 इस हृदय को मैं संभालती
मैं रहने दिया
उसे बहने दिया
उसे उसकी राहों पर छोड़ दिया
उसे एक नया मोड़ दिया
वह अकेला नहीं
 मैं उसके लिए हर क्षण यहीं
वह थमे न
प्रेम बिखेरे प्रेमियों सा
वह महके 
वह चमके
वह तो सब जानता है 
फिर भी मुझे मानता है ।

©Bhanu Priya
  #हृदय  R. Ojha Andy Mann Sethi Ji 0 Ak.writer_2.0