बचपन के उस छोर से मरने के उस छोर तक नलकों पर लदी उन जंजीरों को तोड़ कर आसमां के कांधे से धरती के आँचल तक पानी को निचोड़ा नही जा सकता क्या नदियों की सुखी धाराओं को अपने कंधो पर सुलाकर सूखेपन से कभी छुटकारा नही पाया जा सकता क्या जल ही जीवन जल सा जीवन, जल्दी ही जल जाने से अगर न बची जल की बूंदें, तो ख़ुद की प्यास बुझाने से मोटर वालों के घर में नल के खुले रह जाने से कंधो पर रख के मटका मां को दूर भगाने से गरम रेत पर जलते पाव और मिलो दूरी तय कर जाने से नही रोका जा सकता क्या #paani