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बचपन के उस छोर से मरने के उस छोर तक नलकों पर लदी

बचपन के उस छोर से मरने के उस छोर तक
नलकों पर लदी उन जंजीरों को तोड़ कर
आसमां के कांधे से धरती के आँचल तक
पानी को निचोड़ा नही जा सकता क्या


नदियों की सुखी धाराओं को अपने कंधो पर सुलाकर
सूखेपन से कभी छुटकारा नही पाया जा सकता क्या


जल ही जीवन जल सा जीवन, जल्दी ही जल जाने से
अगर न बची जल की बूंदें, तो ख़ुद की प्यास बुझाने से
मोटर वालों के घर में नल के खुले रह जाने से
कंधो पर रख के मटका मां को दूर भगाने से
गरम रेत पर जलते पाव और
मिलो दूरी तय कर जाने से नही रोका जा सकता क्या #paani
बचपन के उस छोर से मरने के उस छोर तक
नलकों पर लदी उन जंजीरों को तोड़ कर
आसमां के कांधे से धरती के आँचल तक
पानी को निचोड़ा नही जा सकता क्या


नदियों की सुखी धाराओं को अपने कंधो पर सुलाकर
सूखेपन से कभी छुटकारा नही पाया जा सकता क्या


जल ही जीवन जल सा जीवन, जल्दी ही जल जाने से
अगर न बची जल की बूंदें, तो ख़ुद की प्यास बुझाने से
मोटर वालों के घर में नल के खुले रह जाने से
कंधो पर रख के मटका मां को दूर भगाने से
गरम रेत पर जलते पाव और
मिलो दूरी तय कर जाने से नही रोका जा सकता क्या #paani
firozalam2672

Firoz Alam

New Creator