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सामने मंज़िल थी और, हम यह समझ बैठे की मंजिल तो पास

सामने मंज़िल थी और, हम यह समझ बैठे की मंजिल तो पास ही है
थोड़ा आराम क्यूँ ना कर लिया जाये।
पर जब आँख खुली तो 
मंजिल की दूरियाँ फिर से दूर खड़ी थी
अब समझ आया की काश उस वक़्त 
थका ना होता तो आज इतना ना थकना 
पड़ता।

      -Writer Surya हमेसा चलते रहिये।
सामने मंज़िल थी और, हम यह समझ बैठे की मंजिल तो पास ही है
थोड़ा आराम क्यूँ ना कर लिया जाये।
पर जब आँख खुली तो 
मंजिल की दूरियाँ फिर से दूर खड़ी थी
अब समझ आया की काश उस वक़्त 
थका ना होता तो आज इतना ना थकना 
पड़ता।

      -Writer Surya हमेसा चलते रहिये।
suryabhai3280

Writer Surya

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