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तुम्हारी राह देखता हूँ ये अजीब इत्तिफाक है तुम हो

तुम्हारी राह देखता हूँ 
ये अजीब इत्तिफाक है तुम होकर भी नही हो
और मैं मौज़ूद होकर भी अकेला हूँ अपने आप मे
मेरी हर सांस में गरमाहट है तो तुम्हारे अहसास की
और तुम सन्नाटे की वज़ह हो मेरे हर ख़यालात की।

मैं महसूस कर लेता हूँ तुम्हें मगर देख नही सकता
बात कह लेता हूँ तुमसे मगर तुम सुन नही पाती

आँसू इस फिराक में आते है कि तुम आओगी और उन्हें पोंछोगी
और दरवाज़े वैसे ही खुले रहते है जैसे मै उन्हें खुला छोड के आता हूँ।
खिड़किया जालो से ऐसे टिकी हैं मानो 
डाली दरख़्त से बस टूटने को हो
कालीन भर रहा है अपनी आखिरी साँसे
ओर पर्दे अपनी आबरू बचाने में लगे है
तुम्हारे होने से ये मकान घर लगता था कभी
अब तो ज़ख्मो के टाँके खोले राह देखता है
नुमाइश लगाए है अपनी की तुम आओगी

मैं बयां नही कर पाता दर्द अपना ओर तुम हो कि देखने को राजी नही
चली आओ इस बहाने से की मैं हूँ ही नही,
उन दरवाजो को बंद करने उन खिड़कियों को खोलने 
उन पर्दों को सवारने कालीन पर चलनेइस मकान को घर बनाने एक 
आखिरी बार चली आओ
तुम्हारी राह देखता हूँ 
ये अजीब इत्तिफाक है तुम होकर भी नही हो
और मैं मौज़ूद होकर भी अकेला हूँ अपने आप मे
मेरी हर सांस में गरमाहट है तो तुम्हारे अहसास की
और तुम सन्नाटे की वज़ह हो मेरे हर ख़यालात की।

मैं महसूस कर लेता हूँ तुम्हें मगर देख नही सकता
बात कह लेता हूँ तुमसे मगर तुम सुन नही पाती

आँसू इस फिराक में आते है कि तुम आओगी और उन्हें पोंछोगी
और दरवाज़े वैसे ही खुले रहते है जैसे मै उन्हें खुला छोड के आता हूँ।
खिड़किया जालो से ऐसे टिकी हैं मानो 
डाली दरख़्त से बस टूटने को हो
कालीन भर रहा है अपनी आखिरी साँसे
ओर पर्दे अपनी आबरू बचाने में लगे है
तुम्हारे होने से ये मकान घर लगता था कभी
अब तो ज़ख्मो के टाँके खोले राह देखता है
नुमाइश लगाए है अपनी की तुम आओगी

मैं बयां नही कर पाता दर्द अपना ओर तुम हो कि देखने को राजी नही
चली आओ इस बहाने से की मैं हूँ ही नही,
उन दरवाजो को बंद करने उन खिड़कियों को खोलने 
उन पर्दों को सवारने कालीन पर चलनेइस मकान को घर बनाने एक 
आखिरी बार चली आओ