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जैसे जैसे ये ढलती शाम रौशनी को अपने अंदर समेटे जा

जैसे जैसे ये ढलती शाम रौशनी को अपने अंदर समेटे जा रही है।
वैसे वैसे काँटों सी चुभती तुम्हारी याद मुझे सता रही है।। #YadSataRahiH
जैसे जैसे ये ढलती शाम रौशनी को अपने अंदर समेटे जा रही है।
वैसे वैसे काँटों सी चुभती तुम्हारी याद मुझे सता रही है।। #YadSataRahiH