बिस्मिलाह जब हुआ वक़्त की नज़ाकत से तो तैशिब नहीं थी उसकी गुमानत पे दिली चाहत थी की कर लू हजरात इनसे भी मगर उम्र की अलग ही बगावत थी आज जब तोड़ा वक़्त ने शीशे के माफिक तो चकनाचुर हो हम अतीत में खो गए उल्लास के मद में जो कि बेवकूफी उसपे निछावर खुद ही हो गए #lifecycle