अनजान प्रदेश में, निर्जन पथ पर, सुनशान राह में, बैठी शिला पर। जाऊं किस राह, हैं कश्मकश में, जो छूट गई मंजिले, उनका गम न कर। निराश न मन को कर, उठ नई इबारत लिखने को। उन्हें भूल नई पाने को, ©BS NEGI नई इबारत