जाने क्या एहसास है इन ऑखो का ये मयकद़ नही है सिर्फ जाम-ए-समन्दर है, जितनी खामोशियॉ पढी है मैनें इनमें उतनी ही बेचैनियॉ भी इनके अन्दर है। बस इन निगाहो क जाम उतर कर मेरी ऑखो के पैमाने में आ जाए, बस मेरी जिंदगी तेरी मोहब्बत का कोई पयाम पा जाए आरजूए झलकने से पहले सम्भाल लू खुद को ये बाब जाम के ऑखो ही ऑखो सेे टकरा जाए नशीली सी है