Unsplash मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला ©Jashvant #leafbook deep poetry in urdu