माना वक़्त ने बेमतलब के इमतेहान लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए रुक गया क्यूँ, कालकोठरी में बैठा, मौन है उठ ज़रा, मुझको बता दे, तू कौन है मूक मत बन चार फ़ीट की ये ज़ुबान लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए सो चले थकान में सब, तू तब भी जागता रहा सब थक गए, सब रुक गए, तू तब भी भागता रहा पोतले ये चेहरा, तैयार वो, फिर वही पहचान लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए कुछ मिट गए, कुछ हट गए, कुछ रंजिशो में बंट गए कमज़ोर किया बेमतलब का, धागे सारे वो कट गए निकल काली कुटिया से, है धरती सारा जहाँ लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए वो मूढ़ सबसे अज्ञानी हैं, उनसे ना बक-बक करना तू जो कल की बस बातें करे, उनसे भी बचके रहना तू मत सुन पंडित मौलवी की, चल ख़ुदका इंसान लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए तेरे ही सपने थे, तेरे ही आँखों में अब पानी है कोस उसे मत, चिल्ला तू, ये तेरी अपनी कहानी है कुछ जक्म भी अच्छे होते है, उठजा ये निशान लिए देख सूरज है निकला फिर नए अरमान लिए #गंतव्य #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #hindiquotes #hindipoetry #yqdidi माना वक़्त ने बेमतलब के इमतेहान लिए देख सूरज है निकला, फिर नए अरमान लिए रुक गया क्यूँ, कालकोठरी में बैठा, मौन है उठ ज़रा, मुझको बता दे, तू कौन है मूक मत बन चार फ़ीट की ये ज़ुबान लिए