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हम डरते उससे हैं जो हो सकता है मगर अब तक हुआ नहीं

हम डरते उससे हैं जो हो सकता है मगर अब तक हुआ नहीं 
इस डर में फिसलते लम्हें जो हाथ में हैं उनका कुछ होश नहीं
मैंने सोचा है सांसें जो हैं जश्न उनका मनाऊंगा  गुज़र गयीं जो उनका अफ़सोस नहीं
बेशक एक रोज़ तो मरना है मगर वो सिर्फ़ एक रोज़ होगा रोज़ रोज़ हर रोज़ नहीं

 17/4/21 2nd wave of pandemic
हम डरते उससे हैं जो हो सकता है मगर अब तक हुआ नहीं 
इस डर में फिसलते लम्हें जो हाथ में हैं उनका कुछ होश नहीं
मैंने सोचा है सांसें जो हैं जश्न उनका मनाऊंगा  गुज़र गयीं जो उनका अफ़सोस नहीं
बेशक एक रोज़ तो मरना है मगर वो सिर्फ़ एक रोज़ होगा रोज़ रोज़ हर रोज़ नहीं

 17/4/21 2nd wave of pandemic