मगरूर थे सब अपने रोशनी के शामियानों में, बेखबर थे, अंधेरों में डूबते कुछ सपने बंद हैं। मशगूल थे सब सत्ता और राजनीति के घामासानों में, बेसुध थे, प्रकृति के क्रोध से - अब सब सुनसान, सब कुछ मंद, सब कुछ बंद है। मायूस, विचलित होना , गवारा नहीं नुकसानों में, शिथिल क्यूं होना? जब सामर्थ्य बल गतिशील रगों में। ज़रूरी है ज़रा सब्र का होना, जीत की राह छुपी है मन में। धीरे-धीरे धैर्य धरा यदि सबने, धीरे-धीरे साकार होंगे सबके सपने। Thoughts Amidst blackout due to cyclone amphan #cyclone #covid19 #motivation #darkness #nature