यहीं रुक जाते... //अनुशीर्षक// Dear love, वंचित मन विचलित हो सकता है, विवेकहीन नहीं। विवेकहीनता आभाव का पर्याय है। अप्राप्य को भी प्रेम करना है, विलक्षण पर विवेकशील मनुष्य का चिन्ह है। पिछली बार जब मिले तो बताओ कि क्यों अचानक जाने की बात पर जब सहजता को भूलकर मेरी कलाई को ऐसे पकड़ा था कि कांच जितना मुझे चुभा, उतना ही आपको भी चुभा था ना? दर्द तो आपको दुगना हुआ होगा, मेरा लहु जो दिख गया था। मुझे पता है, नहीं कह पाये आप और ना ही मरहम लगाने दिया। तब चुभन से कहीं ज्यादा दर्द हुआ था। चुड़ियों के सारे टुकड़े जमीन पर तो मिले नही आपके जाने के बाद। क्या जेब में रख लें गये थे? बताओ किस कचहरी में लगाई थी दरख्वास्त.... मिली थी उसे सज़ा? क्या सुनी थी किसी ने आपकी वो फरियाद? या आपको भी कटघरे में ला मांगी थी गवाही? अकेले नही करना था ना, अकेले नही सहना था ना। मुझे आवाज देते, या ले जाते अपने साथ।