जिंदगी मात्र पानी का बुलबुला है जीते है चल, नश्वरता को कर स्वीकार यही है सत्य प्रबल, निर्वात मन मे अवांछनीय स्वप्न को न सजाओ, अन्यथा जीवन जीना हो जायेगा अति दुर्बल, ध्यानम,तन्यमता सम अक्षर का बोध तुम करना, अति सरल से नियम है जीवन भी बनता सबल , नेकी वैचारिकता दूर करे परा समालोचना से, परम् धर्म ही आधार बनेगा हमारा आज का कल, मस्तिष्क का सदुपयोग कर समस्या समाधान में, बाधाओं का होगा निपटान मिलेंगे अनेक से हल। 👉🏻 प्रतियोगिता- 229 🌹ग़ज़ल प्रतियोगिता प्रत्येक गुरुवार 🌹 🙂आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा शब्द है ⤵️ 🌹"जीते हैं चल"🌹