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बनता है कभी साया, बनता है कभी ढाल ये है मां

बनता  है  कभी  साया,  बनता  है  कभी  ढाल
ये है मां की  'इस्मत,  मां का आँचल  तू संभाल

थक  हार  के  जब आए,  होवे  जो  तू  निढाल
माथे   पसीना   पोछे,  हो  सारी  थकन  बहाल

रखता  है  दूर  सब  की,  हर  शर-नज़र  से भी
महफ़ूज़  तुझ  को  करता है,  हर बला को टाल सुप्रभात,
🌼🌼🌼🌼

आज की एक रचना मांँ के नाम....💝

🌼आज का हमारा विषय "तेरे आंँचल की छाया में" बहुत ही ख़ूबसूरत है, आशा है आप लोगों को पसंद आएगा।

🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।
बनता  है  कभी  साया,  बनता  है  कभी  ढाल
ये है मां की  'इस्मत,  मां का आँचल  तू संभाल

थक  हार  के  जब आए,  होवे  जो  तू  निढाल
माथे   पसीना   पोछे,  हो  सारी  थकन  बहाल

रखता  है  दूर  सब  की,  हर  शर-नज़र  से भी
महफ़ूज़  तुझ  को  करता है,  हर बला को टाल सुप्रभात,
🌼🌼🌼🌼

आज की एक रचना मांँ के नाम....💝

🌼आज का हमारा विषय "तेरे आंँचल की छाया में" बहुत ही ख़ूबसूरत है, आशा है आप लोगों को पसंद आएगा।

🌼आप सब सुबह की चाय की चुस्की लेते हुए लिखना आरंभ कीजिए।