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(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। पिय कू लिखूं भाव असुंअ

(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
पिय कू लिखूं भाव असुंअन ते,
तडफत सतत मैं अपनेपन ते।
भीजत सारी सारी।।1
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
सुनत कहत मन ही मन अपने,
देखत रहत दिवस भर सपने।
रात करत सब कारी।।2
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
जगत कहे अवगुण शत मोरे,
मर्यादा के बन्धन तोरे।
देत है दुनिया गारी।।3
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। 
 छूट गये सब रिश्ते नाते,
जग के कौतुक तनक न भाते।
मेरो गिरिवरधारी।।4
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
एक भरोसो बसो है मन में,
कोटि कोटि जन तारे क्षण में।
अब है प्रियतम की  बारी।।5
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
पिय कू लिखूं भाव असुंअन ते,
तडफत सतत मैं अपनेपन ते।
भीजत सारी सारी।।1
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
सुनत कहत मन ही मन अपने,
देखत रहत दिवस भर सपने।
रात करत सब कारी।।2
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
जगत कहे अवगुण शत मोरे,
मर्यादा के बन्धन तोरे।
देत है दुनिया गारी।।3
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। 
 छूट गये सब रिश्ते नाते,
जग के कौतुक तनक न भाते।
मेरो गिरिवरधारी।।4
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।।
एक भरोसो बसो है मन में,
कोटि कोटि जन तारे क्षण में।
अब है प्रियतम की  बारी।।5
(मैं तो)लिख लिख पाती हारी।। प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "

प्रिय प्रतिबिम्ब " दिव्य शब्द संग्रह "