ईश्वर ने मुझे नारी का रूप क्या दे दिया,समाज ने जैसे मेरी हैसियत ही मिट्टी में मिला दी। बांध के रखा रीति-रिवाजों की बेड़ियों में, संस्कारों के नाम पर सजावट की चीज बना दी। मां,बेटी,बहू,पत्नी के सब फर्ज निभाये,फिर भी दुनियां के ठेकेदारों ने मेरी शख्सियत मिटा दी। जब चाहे प्यार किया जब चाहे ठुकरा दिया,अपने उपभोग और जरूरतों के लिए बलि चढ़ा दी। ना जानी मर्जी,ना समझे कभी हमारे जज्बात, जब चाहा जिस्म से खेला जीने की हसरत मिटा दी। एक चुटकी सिंदूर के बदले मालिक बन गये,जिंदगी के और जब चाहा हमें दहेज की बलि चढ़ा दी। #Contest 10(Hindi/उर्दू) 💌प्रिय लेखक एवं लेखिकाओं, कृपया अपने अद्भुत विचारों को कलमबद्ध कर अपनी लेखनी से चार चांँद लगा दें। 🎀 उपर्युक्त विषय को अपनी रचना में अवश्य सम्मिलित करें 🎀 चार से छह पंक्तियों में अपनी रचना लिखें,