क्या करें हमें कुछ हमसफर ही ऐसे मिले कि मेरी राह में भटकी फिरी खुद मंजिले कोई हक नहीं बनता तुम्हारा मुझें कुछ भी कहने अपने तक ही रखों अपने ये शिकवे गिले मैं तो राख हो चुका हूँ उल्फत में तुम्हारी क्या पता तेरी लगाई आग ये कब तक जले ये तो किसी की हिज्र की कमजोरी है साहिब जब उसके साथ थे हम भी थे अच्छे भले हमारा कोई वजूद नहीं था लोगों की नजर में जब तक उनकी गर्ज थी तब तक साथ चले @गजल@दोस्ती@क्या