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*दो_मुक्तक (1) बस क़िताबों में नहीं,हैं गीत दिल मे

*दो_मुक्तक
(1)
बस क़िताबों में नहीं,हैं गीत दिल में
गीत के प्रति है बसी निज प्रीत दिल में।
तुम लतीफ़ों से सज़ाओ मंच,लेकिन-
गीत ही करते हैं पैदा जीत दिल में।।
(2)
मैं विरोधी हूँ नहीं जी चुटकुलों का,
फिर भी मैं पण्डित न काज़ी चुटकुलों का।
गीत मेरे दिल में बसते गाऊँ उनको,
हूँ न मैं प्रियवर! रियाज़ी चुटकुलों का।

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #दो_मुक्तक