क्यों फासलें से आ गए हैं अब दिलों के बीच भरनी हैं कुछ मुहब्बतें इन फासलों के बीच..!! बेकारियाँ हैं मुफलिसी और लाचारियाँ बहुत.. ज़िन्दा हैं अपने लोग इन्हीं कातिलों के बीच..!! तूफाँ से क्या गिला करें मौजों से क्या शिकवा जिसका कश्ति डूब गया साहिलों के बीच..!! जलसे, जुलूस, रैलियों में खों गया जहाँ.. तन्हाइयों का ज़िक्र है अब महफ़िलों के बीच..!! काँधे पे उसके हाथ रखा तो वो रों पड़ा.. हँसता रहा हमेशा हीं जो मुश्किलों के बीच..!! #लाचारियाँ #मुफ़लिसी #कश्तियाँ #तुफां #फासलें_दिलों_के