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तुम्हारे साथ,कंटकाकीर्ण मार्ग भी पुष्पों के बिछौने

तुम्हारे साथ,कंटकाकीर्ण मार्ग भी
पुष्पों के बिछौने सा लगता है।
क्षुधा- तृष्णा की कोई अनुभूति नहीं होती
अंतरात्मा तृप्त हो मोक्षगामी होने लगती है।

तुम्हारे बिना मैं स्वयं को देख भी नहीं पाती
तुम्हारे दृग ही तो मेरे दर्पण हैं
जो दिखाते है मेरा सीधा और वास्तविक प्रतिबिंब
विज्ञान की सारी सीमाओं से परे।

मैं वह शून्य हूं जिसका मान तभी होता है
जब होती हूं तुम्हारे दाहिनी ओर
तुम भी तो मेरे लिए यही भावना रखते हो 
मैंने हर पल ये स्नेह तुम्हारे नेत्रों में देखा है।

मैंने उन तेरह वर्षों में जितना तुम्हें जाना है
उतना शायद ही तुम्हें कोई जान सकेगा
मैं सबसे इतना ही कहना चाहती हूं
राम और सीता अलग नहीं बल्कि एक ही हैं।

और ये बात केवल वे समझेंगे
जिन्होंने कभी प्रेम का अनुभव किया हो
कष्टों की परिभाषा गढ़ने वाले
शायद ही कभी हमें समझेंगे
या शायद कभी भी नहीं

©शशांक की कलम से #vanvas
तुम्हारे साथ,कंटकाकीर्ण मार्ग भी
पुष्पों के बिछौने सा लगता है।
क्षुधा- तृष्णा की कोई अनुभूति नहीं होती
अंतरात्मा तृप्त हो मोक्षगामी होने लगती है।

तुम्हारे बिना मैं स्वयं को देख भी नहीं पाती
तुम्हारे दृग ही तो मेरे दर्पण हैं
जो दिखाते है मेरा सीधा और वास्तविक प्रतिबिंब
विज्ञान की सारी सीमाओं से परे।

मैं वह शून्य हूं जिसका मान तभी होता है
जब होती हूं तुम्हारे दाहिनी ओर
तुम भी तो मेरे लिए यही भावना रखते हो 
मैंने हर पल ये स्नेह तुम्हारे नेत्रों में देखा है।

मैंने उन तेरह वर्षों में जितना तुम्हें जाना है
उतना शायद ही तुम्हें कोई जान सकेगा
मैं सबसे इतना ही कहना चाहती हूं
राम और सीता अलग नहीं बल्कि एक ही हैं।

और ये बात केवल वे समझेंगे
जिन्होंने कभी प्रेम का अनुभव किया हो
कष्टों की परिभाषा गढ़ने वाले
शायद ही कभी हमें समझेंगे
या शायद कभी भी नहीं

©शशांक की कलम से #vanvas