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अंतर्द्वंद्व थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त (आरंभ)

अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त 
(आरंभ) 

कहाँ से शुरू करूँ अक्सर इसी सोच में डूब जाती हूँ,,,और यह यह शुरू का पेंच शुरुआत ना करने का डर मन में बैठा देता है। हम जो कुछ भी लिखते हैं उसका आरंभ हम विशेष प्रकार से करना चाहते हैं।
विशेष होना तो आम है किंतु आम होना विशेष ।

ख्यालों की एक  लड़ी मेरे अंतः करण में अक़्सर भावनाओं के माध्यम से बुनी जाती है और मेरे लिए मुश्किल होता है उन्हें शब्दों के रूप में व्यक्त करना। वैसे भी शब्दों में इतना सामर्थ्य कहाँ कि वे भावनाओं को दर्शा सकें अपितु शब्द तो केवल एक सूक्ष्म सा माध्यम है। इस जीवन में हमें दरकार है ऐसे ही माध्यम की। कई बार जी चाहता है कि बस हम बोलते रहें और कोई हमें सुनता रहे ,मगर हर कोई अपनी सुनाना चाहता है कौन किसकी सुनना चाहता है यहाँ? सुनाने वालों की संख्या अधिक है सुनने वालों के मुकाबले, ऐसे में यह लेखन ,यह कागज ,कलम उस सुकून का अहसास दिलाते हैं जो हम अपनी बात को कह कर पाते हैं। ऐसा लगता है कि मानो कुछ कह दिया हो उसके बाद उस कागज को रद्दी में फेंक देना मानो उन भावों का कोई अर्थ नहीं है किसी के सामने, इसलिए प्रकटीकरण ना ही हो तो बेहतर है। बस एक सुकून जो आवश्यक है मन के लिए ~ लेखन।

मेरी शुरुआत को महज़ एक बहाना चाहिए था।
अंतर्द्वंद्व
थोड़ी कल्पना थोड़ी हक़ीक़त 
(आरंभ) 

कहाँ से शुरू करूँ अक्सर इसी सोच में डूब जाती हूँ,,,और यह यह शुरू का पेंच शुरुआत ना करने का डर मन में बैठा देता है। हम जो कुछ भी लिखते हैं उसका आरंभ हम विशेष प्रकार से करना चाहते हैं।
विशेष होना तो आम है किंतु आम होना विशेष ।

ख्यालों की एक  लड़ी मेरे अंतः करण में अक़्सर भावनाओं के माध्यम से बुनी जाती है और मेरे लिए मुश्किल होता है उन्हें शब्दों के रूप में व्यक्त करना। वैसे भी शब्दों में इतना सामर्थ्य कहाँ कि वे भावनाओं को दर्शा सकें अपितु शब्द तो केवल एक सूक्ष्म सा माध्यम है। इस जीवन में हमें दरकार है ऐसे ही माध्यम की। कई बार जी चाहता है कि बस हम बोलते रहें और कोई हमें सुनता रहे ,मगर हर कोई अपनी सुनाना चाहता है कौन किसकी सुनना चाहता है यहाँ? सुनाने वालों की संख्या अधिक है सुनने वालों के मुकाबले, ऐसे में यह लेखन ,यह कागज ,कलम उस सुकून का अहसास दिलाते हैं जो हम अपनी बात को कह कर पाते हैं। ऐसा लगता है कि मानो कुछ कह दिया हो उसके बाद उस कागज को रद्दी में फेंक देना मानो उन भावों का कोई अर्थ नहीं है किसी के सामने, इसलिए प्रकटीकरण ना ही हो तो बेहतर है। बस एक सुकून जो आवश्यक है मन के लिए ~ लेखन।

मेरी शुरुआत को महज़ एक बहाना चाहिए था।