बस स्थपित करने को आदर्श मानदण्ड; राम नहीं हो सकता मैं.. बस कर्तव्यों के निर्वाहन भर करने को; अविराम नहीं हो सकता मैं । इस सामाजिक प्रथाओं के अनुपालन को; निष्काम नहीं हो सकता मैं.. मैं सीधे सीधे शब्दों में ग़र कह दूं बातें अपनी; श्रीराम नहीं हो सकता मैं । बस स्थपित करने को आदर्श मानदण्ड; राम नहीं हो सकता मैं.. बस कर्तव्यों के निर्वाहन भर करने को; अविराम नहीं हो सकता मैं । इस सामाजिक प्रथाओं के अनुपालन को; निष्काम नहीं हो सकता मैं.. मैं सीधे सीधे शब्दों में ग़र कह दूं बातें अपनी; श्रीराम नहीं हो सकता मैं ।