आरज़ू बैंच पर बैठ कर ढलते हुए सूरज को निहार रही थी। मयंक उसे डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था लेकिन शाम हो चुकी थीं और ठंडी हवा की वजह से आरज़ू के बीमार पड़ने का खतरा था। यही सोचकर मयंक ने उससे कहा- “अब हमें चलना चाहिए, रात होने वाली हैं और तुम्हारी बॉडी को भी रेस्ट चाहिए।”
आरज़ू ने लंबी सांस लेते हुए कहा- “जब से दुनिया में आई हूँ, आराम ही तो किया है मैंने। अब औऱ आराम नहीं होता मुझसे। मैं भी ढल जाना चाहती हूँ इस सूरज की तरह। मन, मैने सुना है कि जो लोग दूसरों के लिए मुसीबत बन जाते हैं उनके लिए गवर्नमेंट ने इच्छा मृत्यु का प्रावधान किया है।” आरज़ू ने मयंक की ओर आशा भरी नज़रों से देखा।
मयंक उसकी यह बात सुन सकतें में आ गया था। उसने आरज़ू को लगभग झिंझोड़ते हुए तेज़ आवाज में कहा- हेव यू लॉस्ट योर माइंड अरु, मैंने तुमसे कहा था ना कि ट्रीटमेंट के बाद तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगी, फिर तुम इस तरह की बात कैसे कर सकती हो? क्या तुम्हें मुझपर बिल्कुल यक़ीन नहीं है?”
आरज़ू उसकी बात सुनकर धीरे से बोली- “मुझे तुमपर पूरा यकीन हैं लेकिन मेरी वजह से सबको परेशानी....”