एक तरफा मोहब्बत थी मेरी और मैंने कुछ उससे कहा नहीं लगता था वो अपना सा है मेरा लेकिन मेरे करीब कभी आया नहीं क्यूं टूट जाती हूं मैं जब भी ज़िक्र तेरा करूं लबों पर किसी और का नाम भी तो आता नहीं मेरा टूटना लाज़िम है और टूट कर बिखर जाना ये मेरी आजमाइश है तेरे तकलीफ़ को देखकर कुछ बोलना मेरी फिदरत नहीं पर तुझे दर्द में देख मैं ख़ामोश ही रहूं ये भी तो सही नहीं अतीत में उलझी रही एक पहेली की तरह तूने भी मुझे सुलझाया नहीं वक़्त मिला था पर तूने कुछ कहा नहीं रोती रही मैं तन्हाइयों में फ़िर भी तूने एक बार पीछे देखा ही नहीं मेरी आंखे तुझे जी भर कर देखना चाहती थी तूने भी पीछे देखा नहीं तो मेरी बंद आंखे भी खुला नहीं लिखूंगी अपना हर एक लम्हा पर लिखने वक़्त तुम तो याद आए नहीं काश ख़ुद से एक सवाल करते तुम मेरी मोहब्बत में क्या कमी थी जो मुकम्मल हुआ नहीं चांद देखा था हमने चार आंखों से कभी कैसे देखूं उसको तन्हा साथिया,,,,,, 😍😍😍😍😍😍😍😍 पहली मुलाक़ात हुई थी शायद अधूरी रही ख़्वाबों की बात थी लेकिन हक़ीक़त में अधूरी रही ऐसा क्या हुआ गलती मुझसे मेरी मोहब्बत दो तरफा नहीं