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मंजिलें भी जिद्दी है, राहें भी जिद्दी है, और राही

मंजिलें भी जिद्दी है,
राहें भी जिद्दी है,
और राही भी हम जिद्दी है,
पैरों ने तो रुकना सिखा ही नहीं,
पंखों ने बस उंचाई को छुने कि कसम सी खाई है।
आंखों में ख्वाबों की ज्वाला बस जल रही है।
Abhay Shukla!

©Abhay Shukla
  Dream Big!
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Abhay Shukla

New Creator

Dream Big! #Shayari

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