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गीत --- विदाई मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ

गीत --- विदाई 

मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना  गर्भ  से करों विदाई।
बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई।

जहां  आंगन  तेरे  खेलती, ले  फूल  सी अंगड़ाई।
पापा देख  देख मुस्काती, मैं सहती  नहीं  जुदाई।
मैं अंगुली  पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई।
 तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई।

मां तेरी मैं  घनी लाड़ली, ना  गर्भ से करों  विदाई।
बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें  मुझे पराई।

देख जगत की यह  करतूतें, आंखें मेरी भर आई।
गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई।
मखमल सी मेरी काया को, यूं खंड खंड कटवाई।
चीखें मेरी  निकली  होगी, मां  गर्भाशय  मरवाई।

मां तेरी  मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई।
बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई।

कैसे  होगा  मंगल गायन, कहां  बजेगी  शहनाई।
पाप किया बेटे के खातिर, बेटी  जिसने कटवाई।
जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई।
दुनिया  बेटे  की  चाहत  में, मां  बेटी को मरवाई।

डॉ. भगवान सहाय मीना
बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान।

©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani
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