खुद से पहले... दूसरो के बारे में सोचता है। कोई भूखा तो नही... ये देखता है। दिन हो या रात या हो.... मौसम बारिश और गर्मी का... वो कभी रुकता नहीं। खुद टूट जाए पर.... परिवार की हिम्मत बने रहता है। वो शख्स और कोई नहीं... पिता कहलाता है। फ़िक्र हजारों हों ... फिर भी मुस्कुराते रहता है। वो इस कदर परिवार संभाले रहता है। प्यार मीठे शब्दों में नहीं... कभी कभी कड़वे शब्दों में जताता है। वो शख्स और कोई नहीं... पिता कहलाता है। ऊंगली पकड़ कर चलाता है... हर वक़्त गिरने से बचाता है। वो शख्स और कोई नहीं... पिता कहलाता है। सबकी फ़रमाइश पूरी करते_करते ... खुद को भूल जाता है। वो शख्स और कोई नहीं... पिता कहलाता है। #selfwrittenpoetry