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पल्लव की डायरी मुखड़े से झरते थे गुलाब जिनके जन्नत

पल्लव की डायरी
मुखड़े से झरते थे 
गुलाब जिनके
जन्नत लाने के ख्वाब रखते थे
वो आस्तीन के सांप निकले
कसमे वायदे हजार करके
वो तो डस कर जहर समान निकले
खुली जब परते उनकी
तब वो खुद अपराध के बादशाह निकले
कली कली बिखराकर राष्ट्र की
खुद की चरण वंदना के शौकीन निकले
                                             प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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