बूढ़ापा एक शाम बैठा तो सब कुछ धुंधला धुंधला सा नजर आने लगा था, कपि - किताब आदि सबका नक्शा ही बदलने लगा था। मानो अब जैसे जवानी का सफर उतर चला था, बैठे बैठे वह एक सुनहरा चेयर सिर्फ अपना लगने लगा था। अंगड़ाइयां लेते लेते वह सूरज कब डूब जाता पता ही नहीं चलता, रात का अंधेरा अब तारो जैसा नहीं कलिमया लगने लगा था। उस एक कलम से अब और एकात घंटे लिखा नहीं जाता था, कमजोरी से अब दोस्ती निभाना कुछ अच्छा सा लगने लगा था। अब हर समय हर वक़्त दवियो का राज हमपर चलता था, में हात मैं एक लाठी लिए अपने सपनों को सेखता था। समय के पहियों के साथ चलते चलते बुढ़ापा आ चला था, " छोटे हैं समझ जाएंगे " यह कहके अपने आप को शांत कर लेता था। ©Basanta Bhowmick A glimpse of old age. #oldage #old #nojatohindi