फ़ागुन कौ मतवारो मौसम मन में पँख लगाइ रह्यो है कितनी दूर रहै तू छोरी तुझको आज बुलाय रह्यौ है ! जबसे सुनि लई तेरी बोली मन मेरौ कटराय रह्यौ है ! तेइ मोटी मोटी आँख को भौंरा मेरी धुक धुक को खटकाय रह्यौ है ! बंसी वारे अब का होगो कछु मेरी समझ न आइ रह्यौ है तू राधा कौ तेरी राधे कछु ऐसौ ही मोय भाय गयौ है ! 💕😊#मातृभाषादिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आपको । घर में बने हुए भोजन का स्वाद बहुत ख़ास होता है ना ठीक उतनी ही ख़ासियत अपनी मातृभाषा की होती है।एक अलग तरह का ही आनंद मिलता है । और इसका एहसास तब होता है जब आप अपने गृहनगर या राज्य से बाहर हों और अचानक कोई आपकी बोली बोलता दिख जाए । 💕😊 : मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के मध्य में एक छोटा सा राजस्थान का टुकड़ा मेरे गृहजिले का है । यहां की भाषा और बोलियां मिश्रित हैं ...हल्की सी बुंदेली थोडी सी राजस्थानी और पूरी तरह ब्रजभाषा के मेल से हमारी बोली में एक अलग ही मिठास और कड़कपन एक साथ नज़र आता है इसलिए इसे हम खड़ी बोली के रूप में जानते हैं । आओ भाषाओं के बारे में कुछ पढ़ते हैं----- :