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उसकी मोहब्बत को मैं क्या बयाँ करू वो मेरे लिए सिगर

उसकी मोहब्बत को मैं क्या बयाँ करू
वो मेरे लिए सिगरेट जैसी तो थी 

हर रोज़ मुझे थोड़ा थोड़ा सुलगाया करती थी। 
इस दिल को हर दम जलाया करती थी।
मेरे जज़बातों को धुंए की तरह उड़ाया करती थी।
मेरे हर बातो को हर एक कश में भुलाया करती थी। 
मैं उसकी यादों में धुंआ धुंआ हो कर बिखर जाता था। 
वो मेरी यादो को धुंए में उड़ाया करती थी।
हर एक कश में भुलाया करती थी। wrriten by shabbir khan
उसकी मोहब्बत को मैं क्या बयाँ करू
वो मेरे लिए सिगरेट जैसी तो थी 

हर रोज़ मुझे थोड़ा थोड़ा सुलगाया करती थी। 
इस दिल को हर दम जलाया करती थी।
मेरे जज़बातों को धुंए की तरह उड़ाया करती थी।
मेरे हर बातो को हर एक कश में भुलाया करती थी। 
मैं उसकी यादों में धुंआ धुंआ हो कर बिखर जाता था। 
वो मेरी यादो को धुंए में उड़ाया करती थी।
हर एक कश में भुलाया करती थी। wrriten by shabbir khan