ॐ नमः शिवाय शीष पे शोभित चंद्र , जटा से लिपटी रहती गंगा । त्रिनेत्र विनाशक ललाट पे बासे , गले से लिपटा भुजंगा । जब निकले शिवा , तब बाजे ढोल डमरू और मृदंगा । नीलकंठ , विष रोक गले में , भक्ति में नाचे भूत प्रेत मलंगा। तुझसा न कोई इस जग में तू है इस जग का एकाय । तू आदि अनन्त अगोचर तू दिगम्बराय । नभ थल जल में फैली तेरी सत्ता तू विनाशाय । मोक्ष पाता है वो जग में जिसके भीतर बसा शिवाय ।