मेरे कपड़ों से न आंको मुझे मैं गुज़रूँ तो न ताको मुझे है ज़िन्दगी मेरीै तो पहनावा भी मेरा होगा ना ऐ समाज के ठेकेदारों यूँ बातों के तंज न मारो मुझे मेरे कपड़ों से न आंको मुझे .... सुबह को जल्दी जाती थी रात को घर में आती थी इसके साथ तो गलत होना ही था छोटे -छोटे कपड़ों में जो इतराती थी... दोष मेरे छोटे कपड़ों का था, क्या इसलिए जागी नीयत तुम्हारी ? फिर तीन साल की मासूम बेटी क्यों तुझसे डर कर भागी? दोष मेरे शहरी लहज़े का था, क्या इसलिये बना तू शिकारी ? फिर क्यों गाँव की वो सलवार -सूट वाली लड़की भी भेंट चढ़ी तुम्हारी ? कपड़े बेशक मेरे छोटे थे लेकिन दिल था बिलकुल साफ़, तुम तो बाँध मुखोटा अच्छाई का न जाने और कितने करोगे पाप... थोड़ा ढंग का पहनो थोड़ा धीरे बोलो बेवजह बात पर अपना मुँह न खोलो. बचपन से ही हर लड़की को यही तमीज सिखाते हैं क्यों ताकि तुम कहलाओ महान ? अरे कुछ तमीज बेटों को भी सिखाई होती बचपन से शायद वो आज नहीं बनता इतना बड़ा हैवान .... ....निशा गोला.... मेरे कपड़ों से न आंको मुझे ....