कुछ वर्षों पूर्व तुम चली गई तो सूना पड़ गया संसार। गया था कल तेरे द्वार! उग आए हैं कब्र पर तेरे कुछ भटकते बीजों के भविष्य, कुछ झार- झंखार! पूछा मेरे बेटे ने - कहां हैं दादी? यहां तो झार है, झंखार हैं, सब जगह खार ही खार है। मैंने कहा - बेटे, असुंदर से ही सुन्दर जन्म लेता है। ये जो पेड़ हैं तेरी दादी हैं, हम डार हैं, तुम पात हो, तेरे बच्चे फूल होंगे, और उनके बच्चे फल! और ऐसे ही चलता रहेगा यह संसार। ये झार, ये झंखार, ये पेड़, ये डार! सब, हां, सब! हमारे ही तो हैं परिवार!! पीढ़ियां