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अयि गौरवशालिनी । दर्प विष संचालिनी ।। विद्युत प

अयि गौरवशालिनी ।
दर्प विष संचालिनी ।।
   विद्युत प्रगाढ़ता से परिपूर्ण हो कहां चली ।
   अधर सुधा जल पान तो करा ।
   मादकता नयनों की छलका तो जरा ।।
    रसातल में कब तक रहूँ यूँहीं खड़ा ।
    पिपासा नयनों की बुझा तो जरा ।।
       मृगनयनों की कान्ति की चाह ।
       थी जिसमें प्रेम अथाह ।।
    बिछोह की वेदना से कब तक तड़पता रहे हृदय ।
क्या तुझमें लेषमात्र भी प्रेम नहीं ओ निर्दय ।।
अपलक नयनों का अनुराग ।
अविकल बहकर भरता जा रहा मेरी कोमल काया में दाग ।।
अविलम्ब, अपलक कब तक यूँहीं डटा रहूँ ।
प्रेमरूपी नागपाश से कब तक यूँही बचता रहूँ ।।

©Bharat Bhushan pathak  poetry lovers poetry in hindi hindi poetry on life poetry quotes hindi poetry
अयि गौरवशालिनी ।
दर्प विष संचालिनी ।।
   विद्युत प्रगाढ़ता से परिपूर्ण हो कहां चली ।
   अधर सुधा जल पान तो करा ।
   मादकता नयनों की छलका तो जरा ।।
    रसातल में कब तक रहूँ यूँहीं खड़ा ।
    पिपासा नयनों की बुझा तो जरा ।।
       मृगनयनों की कान्ति की चाह ।
       थी जिसमें प्रेम अथाह ।।
    बिछोह की वेदना से कब तक तड़पता रहे हृदय ।
क्या तुझमें लेषमात्र भी प्रेम नहीं ओ निर्दय ।।
अपलक नयनों का अनुराग ।
अविकल बहकर भरता जा रहा मेरी कोमल काया में दाग ।।
अविलम्ब, अपलक कब तक यूँहीं डटा रहूँ ।
प्रेमरूपी नागपाश से कब तक यूँही बचता रहूँ ।।

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